केंद्र ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि पेंशन कोई “उपहार” नहीं है और भारतीय वायुसेना के नियमों के तहत सौतेली मां को पारिवारिक पेंशन के लिए पात्र नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह कानून और रिश्ते दोनों ही नजरिये से प्राकृतिक मां से अलग है।

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न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष केंद्र ने भरण-पोषण और अन्य कल्याणकारी लाभों से संबंधित शीर्ष अदालत के विभिन्न फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि ‘मां’ शब्द का तात्पर्य केवल प्राकृतिक या जैविक मां से है, सौतेली मां से नहीं।
केंद्र ने कहा, “पेंशन हालांकि कोई उपहार नहीं है और इस पर अधिकार के रूप में दावा किया जा सकता है, लेकिन यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि ऐसा अधिकार न तो पूर्ण है और न ही निरपवाद। पेंशन लाभ चाहने वाले व्यक्ति को लागू वैधानिक प्रावधानों या विनियमों के तहत स्पष्ट अधिकार स्थापित करना होगा।”
केंद्र का यह रुख सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर आया है जिसमें जयश्री वाई जोगी को विशेष पारिवारिक पेंशन देने से इनकार कर दिया गया था।
जोगी ने मृतक, जो एक वायुसैनिक था, का पालन-पोषण छह साल की उम्र से किया था, जब उसकी जैविक मां का निधन हो गया था और उसके पिता ने पुनर्विवाह कर लिया था।
उन्होंने एएफटी के 10 दिसंबर, 2021 के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि वह एक “सौतेली मां” थी, इसलिए वह जैविक मां को मिलने वाली “विशेष पारिवारिक पेंशन” के लाभ की पात्र नहीं थी।
जोगी द्वारा अधिवक्ता सिद्धार्थ संगल के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि उनका दिवंगत पुत्र एक सक्रिय वायुसैनिक था और 28 अप्रैल, 2008 को जब वह वायु सेना मेस में भोजन कर रहा था, तब रहस्यमय परिस्थितियों में उसकी मृत्यु हो गई।
वायु सेना ने दावा किया कि उसकी मृत्यु आत्महत्या से हुई थी।
पीठ ने मामले की सुनवाई 20 नवंबर के लिए स्थगित कर दी।
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