सूज गया था चेहरा‚ धीमी हो गई थी धड़़कन... भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने खोले अंतरिक्ष यात्रा के राज
भारतीय वायुसेना का ग्रुप कैप्टन और अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला हाल ही में एक कार्यक्रम में शामिल हुए जहां उन्होंने अंतरिक्ष यात्रा से जुड़े अपने अनुभव साझा किए।
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भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने कहा कि चेहरे पर सूजन‚ धीमी धड़़कन‚ पीठ में दर्द और भूख न लगना कुछ ऐसी वास्तविकताएं थीं जिनका सामना उन्होंने अंतरिक्ष यात्रा के दौरान किया‚ जो इसकी आकर्षक छवि से बहुत दूर है।
फिक्की सीएलओ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में शुक्ला ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जीवन मानव सहनशक्ति की एक कठिन परीक्षा है‚ जो लचीलेपन‚ टीम भावना और दृढता के शक्तिशाली सबक प्रदान करता है।
उन्होंने कहा‚ “अब आप सोच सकते हैं कि अंतरिक्ष मिशन शुरू से ही रोमांचक होते हैं‚ और सच कहूं तो वे होते भी हैं। लेकिन एक बार जब आप सूIम गुरुûत्व में पहुंच जाते हैं‚ तो आपका शरीर सूIम गुरुûत्व वाले वातावरण में होता है। यह विद्रोह करता है क्योंकि इसने पहले कभी ऐसा वातावरण नहीं देखा होता‚ सबकुछ बदल जाता है।”
शुक्ला ने कहा‚ “रक्त ऊपर की ओर बढता है‚ आपका सिर फूल जाता है‚ आपकी हृदय गति धीमी हो जाती है‚ आपकी रीढ लंबी हो जाती है और आपको पीठ में दर्द होता है। (आपके शरीर के अंदर) आपका पेट भी तैरता रहता है और उसकी सामग्री भी‚ इसलिए आपको भूख नहीं लगती। ये सभी परिवर्तन उस क्षण होते हैं जब आप अंतरिक्ष में पहुंचते हैं।”
उन्होंने एक विशेष रूप से कठिन क्षण को याद किया जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत से ठीक पहले उन्हें मतली और सिरदर्द की समस्या हो रही थी।
शुक्ला ने कहा‚ “आप दवा भी नहीं ले सकते क्योंकि मतली की दवाएं आपको नींद में ड़ाल देती हैं। इसलिए आपको बुरा लगता है और फिर भी आपको काम करना पड़़ता है।” उन्होंने बताया कि स्थिति को देखते हुए उनकी टीम के एक सदस्य ने चुपचाप अपना कैमरा और माइक्रोफ़ोन सेट कर दिया।
शुक्ला ने कहा‚ “यह टीम भावना है‚ शब्दों में नहीं‚ बल्कि काम में।” शुक्ला ने बताया कि अंतरिक्ष यात्रियों को अनगिनत छोटे–छोटे तरीकों से एक–दूसरे पर निर्भर रहना पड़़ता है – जैसे कि ग्लव बॉक्स में लंबे प्रयोगों के दौरान उनके चेहरे के पास पंखा लगाना‚ या जब वे घंटों तक फंसे रहते हैं तो उन्हें पानी की बोतल देना।
उन्होंने कहा‚ “ये छोटे–छोटे प्रयास दर्शाते हैं कि टीम भावना कितनी महत्वपूर्ण है।” शुक्ला ने कहा‚ “सहयोग वैकल्पिक नहीं है‚ यह आवश्यक है। आप अंतरिक्ष में अकेले नहीं जाते‚ आप कई लोगों के कंधों पर सवार होकर जाते हैं।”
उन्होंने कहा कि शारीरिक असुविधा के अलावा अंतरिक्ष यात्रा का भावनात्मक प्रभाव भी गहरा था। शुक्ला ने पृथ्वी की ओर देखने और भारत को निहारने को एक अत्यंत मार्मिक अनुभव बताया। उन्होंने कहा‚ “पृथ्वी पर मौजूद सभी स्थानों में से भारत ऊपर से देखने पर सबसे सुंदर लगता है। समुद्र तट और मैदान अलग ही नजर आते हैं. यह सचमुच सारे जहां से अच्छा है. उन क्षणों में घर से जुड़़ाव बहुत ही अद्भुत लगता है।
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