सुप्रीम कोर्ट का पूरे वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पर रोक लगाने से इनकार

Last Updated 17 Sep 2025 11:49:54 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने आखिर, अपने अंतरिम आदेश में पूरे वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।


सुप्रीम कोर्ट

परंतु अदालत के समक्ष प्रस्तुत याचिकाओं में जिन प्रावधानों को लेकर आपत्तियां थीं, उन पर  रोक जरूर लगा दी। गौरतलब है कि शीर्ष अदालत द्वारा मई के अंत में यह फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। सरकार का मत है कि नया कानून वक्फ बोडरे में सुधार और पारदर्शिता निश्चित करने वाला है। परंतु इस संशोधन को असंवैधानिक बताने और मुसलमानों की संपत्ति हड़पने की मंशा रखने वाला बताने वालों ने सौ से ज्यादा लोगों ने याचिकाएं लगाई थीं।

अदालत के अनुसार केंद्रीय वक्फ काउंसिल में चार से अधिक सदस्यों की संख्या नहीं हो सकती जबकि राज्य के बोर्ड में तीन सदस्य होंगे। जिलाधिकारी को घोषित वक्फ संपत्ति के सरकारी होने न होने के विषय में तय करने का अधिकार भी नहीं होगा। इस कानून का विरोध करने वालों को सबसे ज्यादा आपत्ति जिलाधिकारियों को दिए गए इसी अधिकार को लेकर थी जिसके अनुसार डीएम वक्फ के दावे वाली सरकारी जमीन के बारे में मसौदा सरकार को भेज सकता है, जिसे सरकार द्वारा स्वीकार करने के उपरांत राजस्व रिकॉर्ड में वह भूमि या संपत्ति सरकारी के तौर पर दर्ज की जा सकेगी।

काउंसिल के दो गैर-मुसलमानों और महिला सदस्यों को लेने पर भी मुसलमानों को आपत्ति रही है। जैसा कि माना जाता है यह संपत्ति अल्लाह के नाम पर या धार्मिक/परोपकार के मकसद से दान की जाती है। धर्मस्थलों की आड़ में सरकारी या लंबे अरसे से खाली पड़ी जमीनों पर अतिक्रमण की घटनाएं देश में न अनूठी हैं, न ही नई। इस सरकार का वक्फ या मस्जिदों को निशाने पर रखने का मकसद किसी से छिपा नहीं है। वक्फ की संपत्ति की खरीद-फरोख्त नहीं होती, न ही इसका हस्तांतरण होता है।

देश भर में वक्फ बोर्ड के पास तकरीबन पौने नौ लाख संपत्तियां बताई जाती हैं जिनकी कीमत एक लाख करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई है। यह सरकारी लापरवाही और वोटों के लोभ में समुदाय विशेष को दिए गए संरक्षण का ही नतीजा है जो सरकारी संपत्तियों या भूमि पर अवैध कब्जा होता रहता है। सरकार को भी इसकी कीमत चुकानी होगी। विशेष धर्म के आधार पर कोई कानून बनाने की बजाय निष्पक्ष कानून बनाए जिसकी जद में हर धर्म आता हो। कहना होगा कि अतिक्रमणों को मुक्त कराने के प्रति राज्य सरकारों को मुस्तैद होना ही चाहिए।



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